• "अपनी उन्नति के लिए प्रयत्न करने के साथ समाज की प्रगति में प्रयत्नशील रहना हर सभ्य नागरिक का सामाजिक उत्तरदायित्व है।" - अरूट जी

About Arora-Khatri Community

  • Home
  • About Arora-Khatri Community

अरोड़ा-खत्री

खत्री समाज का इतिहास प्रभावशाली, गौरवशाली और स्वर्णिम रहा है। सिख धर्म के सभी गुरुओं व महायोद्वा सेनापति हरी सिंह नलवा जी जैसे महान और उल्लेखनीय लोगों ने खत्री समाज में ही जन्म लिया है। इस जाति में बड़े-बड़े शूरवीर, योद्धा, व्यापारी, विद्वान और धर्म प्रवर्तक हुए हैं, जिनसे भारत वर्ष के पन्ने रंजित हैं। खत्री शब्द संस्कृत शब्द ”क्षत्रिय“ से आया है, ”खत्री“ और ”क्षत्रिय“ शब्द पर्यायवाची हैं। खत्री क्षत्रिय शब्द का पंजाबी रूप है। यह सूर्यवंश के उत्तराधिकारी हैं।


भगवान श्री राम के वंशजः

गुरु गोविंद सिंह जी द्वारा रचित दशम ग्रन्थ नामक पुस्तक के एक भाग ‘‘बचित्तर नाटक’’ के अनुसार, खत्री जाति की एक उपजाति ‘‘बेदी’’ श्री राम के पुत्र कुश के वंशज हैं। इसी तरह से, एक अन्य किवदंती के अनुसार, सोढ़ी उपजाति श्री राम के दूसरे पुत्र लव के वंशज हैं।


श्री राम के बेटे लव ने लाहौर और कुश ने कसूर बसाया जो दोनो शहर अब पाकिस्तान में है । कालान्तर में लव का पुत्र कालराय वनवास में सुनोध नामक स्थान पर चला गया और वहां पर उस का बेटा पैदा हुआ जिसका नाम सोधीराय था। इसी के नाम से सोढ़ी वंश चला। कुश के वंशज विधा का अध्ययन करने के लिए बनारस चले गए, वेदों का अध्ययन करने के बाद ये वेदी और कालान्तर में बेदी कहलाए। गुरु नानक देव जी बेदी और गुरु गोबिन्द सिंह जी सोढ़ी गोत्र से हुए है।


धन्य है वो माता, धन्य है वो पिता, धन्य है वह सुहद अनुरक्त।
धन्य ग्राम वह जानिये, जहां जन्मे गुरू भक्त॥


जब एक गुरू भक्त के जन्म लेने में ऐसी गौरवान्तित बातें होती है तो जरा सोचिए कि जिस कौम में एक नहीं दस-दस संतो, गुरूओं ने जन्म लिया हो वो कौम कितनी धन्य होगी। सिख धर्म के दस के दस गुरू साहिबान यानि प्रथम पातशाही गुरू नानक देव जी से लेकर दसवीं पातशाही गुरू गोबिन्द सिंह जी तक सभी खत्री कौम में अवतारित हुए।


जहां तक बात है हिन्दू और सिखो की, इनका सम्बन्ध तो पूरी तरह रोटी बेटी का एक सा रहा है और दोनों का खानपान तथा विवाह संस्कार एवं प्रथाएं भी एक सी रही हैं। एक समय में खत्री परिवार में पैदा होने वाला पहला बालक संस्कार कर के सिख बनाया जाता था। हिन्दू तथा सिख धर्म के बीच की कड़ी को जोड़ने वाली खत्री जाति ही है। धर्म से उनके बीच कोई फर्क नहीं पड़ा और दोनों ही धर्म के मानने वाले खत्री साथ- साथ भोजन करते तथा आपस में विवाहादि सम्बन्ध करते हैं।


सिखों ने हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए अनेक कुर्बानियां दीं, गुरू तेग बहादुर जी ने हिंदु धर्म की रक्षा के लिए अपना शीश कटवा दिया था। उनका शहीदी पर्व आज भी हिंदु-सिख एकता का प्रतीक है। औरंगजेब द्वारा हिंदुओं को जबरन मुसलमान बनाए जाने की मुहिम पर उन्होंने अपनी शहीदी के जरिए रोक लगाई। 13 अप्रैल 1699 को दसवें गुरु गोबिन्द राय, गुरू गोबिन्द सिंह बनेे एवं हिन्दू धर्म के रक्षार्थ खालसा पंथ की स्थापना की। विशेषतय अरोड़ा-खत्री जाति के लोग हिंदू और सिख दोनों धर्मों को मानते हैं।


अरोड़ा जातिः खत्री जाति व अरोड़ (अरोड़ा) जाति दोनों ही क्षत्रिय कुल की जातियां है। दोनों जातियां त्रेता युग के सूर्यवंशी राजा श्री रामचन्द्र जी के वंशज है। प्रमाणों से तो पता चलता है कि दोनों जातियां एक ही वृक्ष की दो टहनियां है। दोनों के रहन सहन, बोल चाल, रीति रिवाज और व्यवसाय आपस में मिलते है। ये दोनों जातियां एक से दो कब हुई इस बारे में कई मत है।


लेकिन सन 1936 में लाहौर में एक महासम्मेलन का आयोजन किया गया। दोनों जाति के लोगों ने प्रमाणों को आधार पर भविष्य में आपस में विवाह शादी करने का निर्णय लिया गया और सभी को ”अरोड़ - खत्री एक है“ का निर्णय बताया।


अरोड़ वंश का इतिहास

इतिहासकार ‘टोड’ के अनुसार अरोड़ शब्द का अर्थ है, सिन्ध प्रान्त के पश्चिम उत्तर भाग में सिन्धु नदी के तट पर स्थित अरोड़ नामक प्राचीन शहर से सम्बन्ध रखने वाले। सभी अरोड़ा, कश्यप गोत्र के कहे जाते हैं। यह महर्षि कश्यप, ब्रह्मा जी के मानस पुत्र मरीचि के पुत्र थे। इनके पुत्र विवस्वान (सूर्य) थे और उन्हीं के पुत्र वैवस्वत मनु हुए। भारतीय पौराणिक परंपरा के अनुसार अरोड़, सूर्यवंश के इक्ष्वाकु राजा के वंशज माने जाते थे। अयोध्या के राजा राम भी इसी वंश के थे। भविष्य पुराण (जगत प्रसंग अध्याय 15) के अनुसार अरोड़ जाति के लोग त्रेतायुग में हुए महाराजा अरुट का वंशज है।


त्रेतायुग में श्री परशुराम जी ने किसी कारण से क्रोधित हो कर इस धरती को क्षत्रियों वहीन करने का प्रण लिया हुआ था वो जहां पर भी क्षत्रियों को देखते वहीं पर अपने परसे से खून की नदियां बहा देते थे। इसी समय के चलते एक दिन श्री परशुराम जी का सामना एक शस्त्रों से सुशोभित शूरवीर से हुआ तो परशुराम जी ने उसका परिचय पूछा, तो उसने कहा कि मेरा नाम राजा अरुट है और मैं क्षत्रिय हूँ।


इस निर्भयपूर्वक ढंग की वार्तालाप ने श्री परशुराम जी को प्रभावित कर दिया और इस पर श्री परशुराम जी से राजा अरुट को सम्मानपूर्वक अभयदान मिला और उन्होंने सिन्धु नदी के किनारे पर अरुट कोट नामक शहर बसाया । जो कि समय गुजरते कई पीढ़ियों ने वहां राज किया और वही अरोड़ वंशी कहलाए। वर्ष 711 तक, अरोड़ कुल ने राज किया। आज अरोड़-खत्री संसार के सभी क्षेत्रों में रहते हैं। वे भारत और दुनिया में एक प्रभावशाली समुदाय बनने में कामयाब रहे है। अरोड़-खत्री लोग भले ही आधुनिक हों, लेकिन उनकी परंपराओं और मूल्यों के साथ उनका बहुत गहरा संबंध है। अरोड़-खत्री लोगों को अपनी भारतीय विरासत पर गर्व है और उन्होंने भारतीय सस्कृतिं में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। आज अरोड़-खत्री प्रौद्योगिकी, चिकित्सा, वित्त, व्यवसाय, इंजीनियरिंग, शिक्षा, निर्माण, मनोरंजन और सशस्त्र बल आदि कई क्षेत्रों में अपना ध्वज फहरा रहे हैं।


"सब का मीत हम आपन कीना हम सभना के साजन"